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"मानव मार्केट" के माध्यम से छत्तीसगढ़ का सिनेमा बोलेगा अब जनता की भाषा: मनीष तिवारी

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जैसे अन्य राज्यों की फिल्मों को उनके कंटेट की वजह से पसंद किया जाता है वैसे ही अपने मेडिकल कॉर्पोरेट कल्चर कंटेट की वजह से छत्तीसग की तरफ लोगों का ध्यानाकर्षित करेगी हिंदी फीचर फिल्म "मानव मार्केट" : मनीष तिवारी


मनोरंजन : हमने अक्सर बहुत सारे अलग-अलग राज्यों की फिल्में देखीं हैं। ख़ासकर साउथ की फिल्मों का अभी वर्ल्ड वाइड अच्छा खासा क्रेज हो गया है। जो उनकी अपनी बरसों की मेहनत और अपनी जड़ों से जुड़े हुए विषयों पे फिल्म बनाना। कोई सोशल इस्यु पर आधारित फिल्म बनाना। उनकी कमाल की बात ये है की ये लोग संदेश देने वाली फिल्मों को भी मास फिल्म बना देते हैं। जितना संवेदनशील विषय उतना ही रोचक उसे पेश करने का ढंग। हमने अपनी फिल्म ‘‘मानव मार्केट‘‘ को भी बनाने के लिए स्क्रीनप्ले के ट्रीटमेंट का जो तरीका चुना है, वो है दर्शकों के हिसाब का ट्रीटमेंट। जहां रोचकता है। रोमांच है। इमोशन्स है। गीत-संगीत है। प्रॉब्लम है और उसका सॉल्यूशन है। जैसे अन्य राज्यों की फिल्मों को उनके कंटेट की वजह से पसंद किया जाता है वैसे ही अपने मेडिकल कॉर्पोरेट कल्चर कंटेट की वजह से छत्तीसगढ़ की तरफ लोगों का ध्यानाकर्षित करेगी हिंदी फीचर फिल्म ‘‘मानव मार्केट‘‘ ये कहना है जी प्रोडक्शन हेड और मैनेजर मनीष तिवारी जी का।



मनीष तिवारी जी काफी लम्बे समय से मुट्ठी नाट्य संस्था भिलाई के ज़रिये रंगमंच से जुड़े रहे। वे अभी भी मुट्ठी के किसी भी नाट्य मंचन में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा उन्होने बतौर निर्माता-निर्देशक कई लघु फिल्मों का निर्माण किया। साथ ही भिलाई टाकीज पिक्चर्स के बैतर तले बनी कई लघु फिल्मों और फीचर फिल्मों में बतौर प्रोडक्शन हेड काम किया। ‘‘मानव मार्केट‘‘ में काम करने का अनुभव कैसा रहा पूछने पर मनीष जी ने बताया की, ये फिल्म मेरे दिल के बहुत क़रीब की फिल्म है। ‘‘मानव मार्केट‘‘ में जो भी कुछ दिखाया गया है। उसे मैने रीयल में मेरे कई अपनों के साथ घटते हुए देखा है। यहां तक की जब मैने अपने करीबियों को इस फिल्म के विषय के बारे में बताता था तो वो भी मेडिकल फील्ड में उनके साथ हुई कई असाजिक घटनाओं का ज़िक्र करते थे और कई तो बताते-बताते रो देते थे। तभी मुझे इस बात का अहसास हुआ की जनता की बात जनता तक पहुंचाने का माध्यम है सिनेमा और जब जनता को लगता है की ये मेरी फिल्म है, ये मेरी बात करती है तब जनता को इस बात से कोई मतलब नही होता की इस फिल्म में स्टार कौन है? कितने बड़े प्रोडक्शन की फिल्म है? इसका बजट कितना है? ऐसी कंटेट बेस्ड फिल्मों का स्टार सिर्फ एक ही होता है और वो है, सिर्फ जनता। और ये बात कई कम बजट की बेहतर फिल्मों ने साबित भी किया है। फिल्म के गीत-संगीत की चर्चा करते हुए मनीष बताते हैं की, फिल्म के निर्देशक गु़लाम हैदर मंसूरी हर काम को इतना ज्यादा परफेक्ट करने की कोशिश करते हैं। की सही बताउं तो कभी-कभी मुझे अंदर ही अंदर गु़स्सा आ जाता है पर बाद में वो जिस काम को फाईनल करवाते हैं तब समझ में आता है की वो ऐसा क्यों करते हैं। हमारी फिल्म का एक गीत ‘‘तेरे नैना बावरे‘‘ इसे बनने में छह महीने का समय लगा। इतने सारे संगीतकारों ने हैदर सर को गाना कम्पोज़ करके सुनाया पर उन्हें पसंद ही नही आ रहा था। फिर बहुत सारी फेर-बदल के बाद अभी जो गाना सोनोटेक यू-ट्यूब चैनल पर है। वो फाइनल हुआ। इसी तरह बांकी के गीतों में भी उन्होने लिरिक्स राईटर से कई बार करेक्शन करवाया पर जो फाईनल गाना बनवाया उन्होने उसको सुनकर लगा की हां ये वाकई ‘‘मानव मार्केट‘‘ के लिए बनाया गया गाना है। मनीष जी चर्चा के दौरान बताते हैं की मुट्ठी नाट्य संस्था भिलाई और भिलाई टाकीज पिक्चर्स से जुड़ना उनके लिए बहुत सुखद रहा। मनीष जी का नम्बर लेने के लिए जब हमने हैदर सर को कॉल किया तो मनीष जी को लेकर हुई चर्चा में उन्होने मनीष जी के बारे में बताया की मनीष के जैसा बंदा उन्होने अपने पूरे जीवन में कभी नही देखा। फिल्म की शूटिंग के दौरान सैट पे सबसे पहले पहुंचने वाला बंदा मनीष और सबसे आ़ख़री में घर जाने वाला बंदा भी मनीष तिवारी। कई बार तो मैने उसे डांटकर घर भेजा है की इतनी रात तक तुम वहां रूकते हो फिर सुबह चार बजे पहुंच जाते हो। सोते कब हो? बहुत मेहनती और शांत दिमाग का इंसान। काम के प्रति इतना समर्पित की दीपावली के दो दिन पहले उड़ीसा चला गया था हार्ड-डिस्क लेने उसको ये भी फिक्र नही थी की ट्रेन रद्द हो गई तो साल में एक बार आने वाला त्यौहार में वो घर पर नही होगा। पर उसकी लगन देखकर हमने भी तय कर लिया था की उसे और प्रोडक्शन कंट्रोलर आनंद साहू जी को ऐसी परिस्थिति हई तो या तो फ्लाइट से या फिर कार बुक करके लाएंगे पर उनका त्यौहार मिस नही होने देंगे। इन सभी अनुभवों के बीच मनीष तिवारी जी का अपनी फिल्म को लेकर नज़रिया बिल्कुल साफ है की ये फिल्म ख़ूब चलेगी। दर्शक इसे ज़रूर पसंद करेंगे साथ ही बेहतर कंटेट और ज़बरदस्त निर्माण की वजह से़ हिंदी सिने जगत में छत्तीसगढ की उपस्थिति दर्ज करवाएगी हिंदी फीचर फिल्म ‘‘मानव मार्केट‘‘।

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