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वास्को डी गामा के बारे में अनसुनी बातें

इतिहास The Gazette : वास्को दा गामा एक प्रसिद्ध पुर्तगाली नाविक थे जो 15वीं सदी के आरंभ में भारत की खोज करने के लिए प्रस्तुत थे। उनका प्रमु...

इतिहास The Gazette : वास्को दा गामा एक प्रसिद्ध पुर्तगाली नाविक थे जो 15वीं सदी के आरंभ में भारत की खोज करने के लिए प्रस्तुत थे। उनका प्रमुख लक्ष्य भारत के साथ व्यापार संबंध स्थापित करना था।

वास्को डि गामा 



1497 में, उन्होंने तीन जहाजों का समुद्री यात्रा आयोजित किया। 20 मई 1498 को, उनका जहाज भारत के केरल के समुद्री तटों पर पहुँचा। इससे पहले, पुर्तगाली नाविकों ने भारत को समुद्र से नहीं पहचाना था, लेकिन वास्को दा गामा के पहुँचने से यूरोपीय व्यापारियों के लिए एक नया व्यापार मार्ग खुल गया।


वास्को दा गामा की इस यात्रा ने पुर्तगाल को भारतीय व्यापार में प्रवेश की अनुमति दी, जिससे उन्हें भारतीय वस्त्रों, मसालों, और अन्य वस्तुओं का लाभ हो सके। इसके अलावा, उनकी यात्रा ने भारतीय उपमहाद्वीप से पुर्तगाल के बीच सीधे संपर्क की दिशा में अहम गति प्रदान की।


वास्को दा गामा के इस कार्यक्रम ने यूरोपीय देशों को भी प्रेरित किया कि वे भी भारत के व्यापार में हिस्सा लें। इससे पुर्तगाल के बाद अन्य यूरोपीय राष्ट्रों ने भी भारत के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए।


वास्को दा गामा की इस यात्रा के बाद, पुर्तगाली लोगों ने भारत के साथ व्यापार, सांस्कृतिक और धर्मात्मक रूप से गहरे संबंध स्थापित किए। वे भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक हैं और उनकी यात्रा भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरित्र के रूप में मानी जाती है।


भारतीय इतिहास में वास्कोडिगामा के चरित्र के बारे में ये बातें हमें नहीं बताई गई हैं... 

500 साल पुरानी बात है, भारत के दक्षिणी तट पर एक राजा के दरबार में एक यूरोपियन आया था। मई का महीना था, मौसम गर्म था पर उस व्यक्ति ने एक बड़ा सा कोट-पतलून और सिर पर बड़ी सी टोपी डाल रखी थी। उस व्यक्ति को देखकर जहाँ राजा और दरबारी हँस रहे थे, वहीं वह आगन्तुक व्यक्ति भी दरबारियों की वेशभूषा को देखकर हैरान हो रहा था। स्वर्ण सिंहासन पर बैठे जैमोरीन राजा के समक्ष हाथ जोड़े खड़ा वह व्यक्ति वास्कोडिगामा था जिसे हम भारत के खोजकर्ता के नाम से जानते हैं। यह बात उस समय की है जब यूरोप वालों ने भारत का सिर्फ नाम भर सुन रखा था , पर हाँ... इतना जरूर जानते थे कि पूर्व दिशा में भारत एक ऐसा उन्नत देश है जहाँ से अरबी व्यापारी सामान खरीदते हैं और यूरोपियन्स को महँगे दामों पर बेचकर बड़ा मुनाफा कमाते हैं। भारत के बारे में यूरोप के लोगों को बहुत कम जानकारी थी लेकिन यह "बहुत कम" जानकारी उन्हें चैन से सोने नहीं देती थी... और उसकी वजह ये थी कि वास्कोडिगामा के आने के दो सौ वर्ष पहले (तेरहवीं सदी) पहला यूरोपियन यहाँ आया था जिसका नाम मार्कोपोलो (इटली) था ।

यह व्यापारी शेष विश्व को जानने के लिए निकलने वाला पहला यूरोपियन था जो कुस्तुनतुनिया के जमीनी रास्ते से चलकर पहले मंगोलिया फिर चीन तक गया था। ऐसा नहीं था कि मार्कोपोलो ने कोई नया रास्ता ढूँढा था बल्कि वह प्राचीन शिल्क रूट होकर ही चीन गया था जिस रूट से चीनी लोगों का व्यापार भारत सहित अरब एवं यूरोप तक फैला हुआ था। जैसा कि नाम से ज्ञात हो रहा है चीन के व्यापारी ने जिस मार्ग से होकर अपना अनोखा उत्पाद "रेशम" तमाम देशों तक पहुँचाया था उन मार्गों को "रेशम मार्ग" या शिल्क रूट कहते हैं । (आज की तारीख में यह मार्ग विश्व की अमूल्य धरोहरों में शामिल है)

तो मार्कोपोलो भारत भी आया था। कई राज्यों का भ्रमण करते हुए केरल भी गया था। यहाँ के राजाओं की शानो शौकत, सोना-चाँदी जड़ित सिंहासन, हीरों के आभूषण सहित, खुशहाल प्रजा, उन्नत व्यापार आदि देखकर वापस अपने देश लौटा था। भारत के बारे में यूरोप को यह पहली पुख्ता जानकारी मिली थी।

इस बीच एक गड़बड़ हो गई, अरब देशों में पैदा हुआ इस्ला म तब तक इतना ताकतवर हो चुका था कि वह आसपास के देशों में अपना प्रभुत्व जमाता हुआ पूर्व में भारत तक पहुँच रहा था तो वहीं पश्चिम में यूरोप तक।

कुस्तुनतुनीया (Constantinople, वर्तमान टर्की) जो कभी ईसाई रोमन साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, उसके पतन के बाद वहाँ ऊस्लिमों का शासन हो गया.... और इसी के साथ यूरोप के लोगों के लिए एशिया का प्रवेश का मार्ग बंद हो गया। क्योंकि ऊस्लिमों ने ईसाइयों को एशिया में प्रवेश की इजाजत नहीं दी।

अब यूरोप के व्यापारियों में बेचैनी शुरू हुई। उनका लक्ष्य बन गया कि किसी तरह भारत तक पहुँचने का मार्ग ढूँढा जाए। बात पुर्तगाल पहुँची। एक नौजवान और हिम्मती नाविक वास्कोडिगामा ने अब भारत को खोजने का बीड़ा उठाया। अपने बेड़े और कुछ साथियों को लेकर निकल पड़ा समुद्र में और आखिरकार कुछ महीनों बाद भारत के दक्षिणी तट कालीकट पर उसने कदम रखा। खैर, अब यूरोप के व्यापारियों के लिए भारत का दरवाजा खुल चुका था। नये समुद्री मार्ग की खोज हो चुकी थी जो यूरोप और भारत को जोड़ सकता था। ।

सिंहासन पर बैठे जैमोरिन राजा से वास्कोडिगामा ने हाथ जोड़कर व्यापार की अनुमति माँगी, अनुमति मिली भी... पर कुछ सालों बाद हालात बदल गए। बहुत सारे पुर्तगाली व्यापारी आने लगे, इन्होंने अपनी ताकत बढ़ाई , साम दाम दंड की नीति अपनाते हुए राजा को कमजोर कर दिया गया और अन्ततः राजा का कत्ल भी इन्हीं पुर्तगालियों के द्वारा करवा दिया गया।

70-80 वर्षों तक पुर्तगालियों द्वारा लूटे जाने के बाद फ्रांसीसी आए। इन्होंने भी लगभग 80 वर्षों तक भारत को लूटा ।

इसके बाद डच (हालैंड वाले) आए, उन्होंने भी खूब लूटा और सबसे अंत में अँगरेज आए पर ये लूटकर भागने के लिए नहीं बल्कि इन्होंने तो लूट का तरीका ही बदल डाला। इन्होंने पहले तो भारत को गुलाम बनाया फिर तसल्ली से लूटते रहे। 20 मई 1498 को वास्कोडिगामा भारत की धरती पर पहला कदम रखा था, और आज के दिन वो राजा के समक्ष अनुमति लेने के लिए हाथ जोड़े खड़ा था। उसके बाद उस लुटेरे और उनके साथियों ने भारत को जितना बर्बाद किया वो इतिहास बन गया।

आज जिसे हम भारत का खोजकर्ता कहते नहीं अघाते हैं, दरअसल वह एक लूटेरा था जो सिर्फ भारत को लूटा ही नहीं था बल्कि यहाँ रक्तपात भी बहुत किया था ,,,, भारतीय इतिहास में वास्कोडिगामा के चरित्र के बारे में ये बातें हमें नहीं बताई गयीं।

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