ढाका : बांग्लादेश एक बार फिर से राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। लगभग 49 साल पहले, 15 अगस्त 1975 को, देश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहम...
ढाका: बांग्लादेश एक बार फिर से राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। लगभग 49 साल पहले, 15 अगस्त 1975 को, देश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश ने तख्ता पलट देखा था। आज, उसी इतिहास की पुनरावृत्ति करते हुए, एक और सैन्य तख्ता पलट ने देश को संकट में डाल दिया है।
सैन्य तख्ता पलट के बाद, प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पिता की तरह अपनी जान बचाने के लिए भारत में शरण ली है। इस बार भी उन्होंने भारत के त्रिपुरा राज्य के अगरतला में हेलिकॉप्टर से उतरकर शरण ली। यह वही स्थान है जहां 1981 में उन्हें भारत में प्रवेश करने की कोशिश करते समय गिरफ्तार किया गया था।
शेख हसीना के लिए यह दूसरी बार है जब उन्होंने तख्ता पलट के बाद भारत में शरण ली है। 1975 में उनके पिता की हत्या के बाद, वे अपनी बहन के साथ भारत आईं थीं और लगभग छह साल तक यहां रहीं। 18 मई 1989 को वे भारत से बांग्लादेश लौट गईं थीं, जब इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट से वे कोलकाता से ढाका पहुंची थीं। उनके स्वागत में अवामी लीग के नेताओं की एक बड़ी भीड़ एयरपोर्ट पर मौजूद थी।
तब की तरह, इस बार भी उनके आगमन के समय बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता चरम पर है। तख्ता पलट के बाद सत्ता संघर्ष की खबरें आ रही हैं, और बांग्लादेश के नागरिक अपनी सुरक्षा और देश की स्थिरता को लेकर चिंतित हैं।
भारत सरकार ने इस स्थिति में शेख हसीना को शरण देकर एक बार फिर से अपनी मित्रता का परिचय दिया है। यह कदम दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को और मजबूत करेगा। भारतीय अधिकारियों ने कहा है कि वे शेख हसीना को हर संभव सहायता प्रदान करेंगे, ताकि बांग्लादेश में स्थिरता और शांति की बहाली हो सके।
इस राजनीतिक संकट के बीच बांग्लादेश के भविष्य को लेकर अनेक प्रश्न खड़े हो गए हैं। क्या यह तख्ता पलट देश में एक नई दिशा की ओर ले जाएगा, या फिर यह राजनीतिक अस्थिरता को और बढ़ाएगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल, बांग्लादेश की जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें बांग्लादेश की स्थिति पर टिकी हैं, यह उम्मीद करते हुए कि जल्द ही स्थिति सामान्य होगी।
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