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प्रेस विज्ञप्ति जारी कर नक्सलियों ने लगाया छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय उद्यानों के नाम पर लाखों लोगों के विस्थापन का आरोप

बीजापुर (सागर कश्यप) : भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के दक्षिण सब जोनल ब्यूरो ने कल एक प्रेस नोट जारी कर छत्तीसगढ़ सरकार पर गंभीर आरो...

बीजापुर (सागर कश्यप) : भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के दक्षिण सब जोनल ब्यूरो ने कल एक प्रेस नोट जारी कर छत्तीसगढ़ सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इसमें कहा गया है कि इंद्रावती और उदंती राष्ट्रीय उद्यानों के विस्तार और बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित करने के नाम पर सरकार स्थानीय जनता को विस्थापित करने की योजना बना रही है। 

प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, बीजापुर जिले के कुटरू और भोपालपट्टनम ब्लॉक में स्थित सात पंचायतों के 78 गांवों को अलग-अलग चरणों में खाली कराने का सरकार का प्रस्ताव है। पहले चरण में 22 और दूसरे चरण में 56 गांवों को विस्थापित किया जाएगा। संगठन का दावा है कि इससे हजारों लोग प्रभावित होंगे, जिनमें से कई के पास ज़मीन के वैध पट्टे नहीं हैं, और ऐसे लोगों के पुनर्वास के लिए कोई स्पष्ट योजना नहीं बनाई गई है।


विस्थापन और राष्ट्रीय उद्यान की योजना :

माओवादी संगठन का आरोप है कि 2009 में इंद्रावती क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित करने के बावजूद वहां रहने वाले लोगों को विस्थापित नहीं किया गया। लेकिन अब सरकार नए सिरे से विस्थापन का प्रयास कर रही है। प्रेस नोट में माओवादी संगठन ने यह भी बताया कि इसी प्रकार का खतरा नारायणपुर जिले के माड़ क्षेत्र में माड़िया आदिवासियों पर भी मंडरा रहा है, जहाँ सैनिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने की योजना है।


राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने देशभर में 56 टाइगर रिजर्व इलाकों में 600 गांवों के लगभग 70,000 परिवारों को विस्थापित करने का लक्ष्य रखा है। माओवादी संगठन ने इस आंकड़े को जमीनी हकीकत से कम बताते हुए कहा कि यह संख्या लाखों में हो सकती है।


प्रेस नोट में माओवादी संगठन ने केंद्र सरकार पर वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन करके आदिवासी क्षेत्रों को कारपोरेट कंपनियों को सौंपने का आरोप लगाया। इसके अनुसार, जंगलों और खनिज संसाधनों से भरपूर छत्तीसगढ़ में खनिज संपदा की लूट और कॉर्पोरेट परियोजनाओं के लिए हजारों एकड़ जंगल का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके लिए बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के साथ-साथ पुलिस कैंप भी स्थापित किए जा रहे हैं।


प्रेस नोट में कहा गया कि इन परियोजनाओं से आदिवासी संस्कृति, पर्यावरण संतुलन और रोजगार पर बुरा असर पड़ेगा। अब देखना है कि इन आरोपों पर सरकार की ओर से क्या प्रतिक्रिया आएगी? या यह सब आरोप बेबुनियाद हैं, और नक्सल संगठन की अपनी मौजूदगी को दिखाने मात्र का प्रपंच है। 


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