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स्वरागिनी के सालाना आयोजन में झलका शास्त्रीय संगीत का जादू

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सितार और तबले की जुगलबंदी ने जगदलपुर में बांधा समां : जगदलपुर :  हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रेमियों के लिए कल की रात अविस्मरणीय रही। स...

  • सितार और तबले की जुगलबंदी ने जगदलपुर में बांधा समां :

जगदलपुर : हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रेमियों के लिए कल की रात अविस्मरणीय रही। स्वरागिनी द्वारा आयोजित शास्त्रीय संगीत के वार्षिक समारोह में प्रख्यात सितारवादक शुभ्रनिल सरकार और तबला वादक दिपिन दास ने अपनी मनमोहक जुगलबंदी से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस आयोजन ने न केवल शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परंपरा को जीवंत किया बल्कि कला के प्रति दर्शकों के गहरे जुड़ाव को भी दर्शाया।


कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती के माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन से हुई। इस अवसर पर डॉ. ज्योति लागू, एम. श्रीनिवास मद्दी, किशोर पारख, मनीष मिश्रा और स्वरागिनी के अन्य सदस्य विशेष रूप से उपस्थित थे।
प्रारंभ में श्रीमती आभा सामदेकर और बलराम साबड़े ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। इसके बाद डॉ. ज्योति लागू ने राग मालकोश में अपने सुरीले गायन से दर्शकों को भावविभोर कर दिया।



इसके बाद कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण, कोलकाता से पधारे शुभ्रनिल सरकार ने मंच संभाला। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत राग झिझोटी से की। उनकी उंगलियों से सितार की तारों पर जब धुन बजी, तो पूरा सभागार सुरों की मिठास में डूब गया। राग श्याम कल्याण और मिश्रित धुनों के प्रदर्शन ने इस अनुभव को और यादगार बना दिया।

सबसे अद्भुत पल तब आया जब शुभ्रनिल सरकार के सितार और दिपिन दास के तबले की जुगलबंदी हुई। सुर और ताल के इस अद्भुत संगम ने श्रोताओं को मोह लिया। श्रोताओं को ऐसा प्रतीत हुआ मानो रात खुद सुरों की एक नदी बन गई हो, जो लय और ताल के साथ बहती जा रही हो।

कार्यक्रम में शास्त्रीय संगीत के प्रेमियों ने उत्साह और गर्व के साथ कलाकारों का स्वागत किया। तालियों की गड़गड़ाहट ने यह स्पष्ट कर दिया कि दर्शकों के दिलों में यह प्रस्तुति गहरी छाप छोड़ गई।

अंत में स्वरागिनी की ओर से डॉ. ज्योति लागू, किशोर पारख और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने कलाकारों को शाल और स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन अभय सामदेकर ने कुशलता से किया।

यह आयोजन न केवल एक संगीत महोत्सव था, बल्कि शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परंपरा और उसकी गहराई को दर्शाने वाला एक विशेष अवसर भी था। स्वरागिनी के इस चौथे वार्षिक आयोजन ने एक बार फिर साबित कर दिया कि शास्त्रीय संगीत आज भी लोगों के दिलों को छू सकता है।



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