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वैश्विक युद्ध के मुहाने पर बैठी दुनिया यूरोप बनाम एशिया की बढ़ती तनातनी

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जगदलपुर(विमलेंदु शेखर झा) : विश्व आज ऐसे नाज़ुक मोड़ पर खड़ा है जहाँ हर दिशा से युद्ध की आहट सुनाई दे रही है। मानव सभ्यता का भविष्य मानो बार...

जगदलपुर(विमलेंदु शेखर झा) :

विश्व आज ऐसे नाज़ुक मोड़ पर खड़ा है जहाँ हर दिशा से युद्ध की आहट सुनाई दे रही है। मानव सभ्यता का भविष्य मानो बारूद के ढेर पर रखा हो। एशिया से लेकर यूरोप तक, हर मोर्चे पर संघर्ष की ज्वालाएँ भड़क रही हैं और तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका पहले से कहीं अधिक प्रबल हो गई है।

इज़राइल और हमास के बीच युद्धविराम लागू जरूर हुआ है, पर गाज़ा पट्टी अब भी मानवीय त्रासदी का प्रतीक बनी हुई है। भूख, बीमारी और भय ने वहां के लोगों का जीवन असंभव बना दिया है। बच्चों के पास भोजन नहीं, अस्पतालों में दवाइयों की भारी कमी है और घायल नागरिक खुले आसमान के नीचे तड़प रहे हैं।

लेबनान द्वारा इज़राइल पर हालिया हमले ने स्थिति को और भयावह बना दिया है, जिससे अमेरिका के शांति प्रयासों पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है।

रूस-यूक्रेन युद्ध अब अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। हज़ारों सैनिक और नागरिकों की जानें जा चुकी हैं, शहर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। यूक्रेन द्वारा रूस पर लगातार ड्रोन हमले किए जाने के बाद अब रूस के पास गोला-बारूद की कमी की खबरें सामने आ रही हैं।

रूस की परमाणु हमले की धमकियाँ इस युद्ध को वैश्विक संकट में बदल रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघर्ष अब केवल दो देशों का नहीं, बल्कि अमेरिका और नाटो बनाम रूस का अप्रत्यक्ष युद्ध बन चुका है।

उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग-उन ने 2022 के बाद से 100 से अधिक मिसाइल परीक्षण किए हैं, जिनमें कई परीक्षण अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया को लक्ष्य बनाकर किए गए।

उधर चीन और ताइवान के बीच तनाव चरम पर है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विस्तारवादी नीतियाँ और अमेरिका का ताइवान को समर्थन, एशिया को एक और बड़े युद्ध की ओर धकेल रहा है।

डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद वैश्विक राजनीति में अस्थिरता बढ़ी है। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की व्यावसायिक सोच और हथियार उद्योग से जुड़े हित, अमेरिका को कभी भी वास्तविक युद्धविराम की दिशा में नहीं जाने देंगे। अमेरिका, रूस, चीन, उत्तर कोरिया और नाटो देश  सभी अपने-अपने सैन्य उद्योगों के लाभ के लिए युद्ध को अवसर के रूप में देखते हैं।

इन सबके बीच भारत ने विश्व के सामने संयम और संतुलन की मिसाल पेश की है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे सटीक सैन्य अभियान के बाद भी भारत ने युद्ध की बजाय कूटनीति को प्राथमिकता दी।

रूस के साथ पारंपरिक मित्रता और अमेरिका के साथ बढ़ते सामरिक संबंधों ने भारत को एक “संतुलनकारी शक्ति” के रूप में स्थापित किया है। यही भूमिका आज वैश्विक शांति की सबसे बड़ी आशा बन चुकी है।

विश्लेषकों का मानना है कि यदि मौजूदा हालात पर नियंत्रण नहीं हुआ, तो चीन-ताइवान, रूस-यूक्रेन और इज़राइल-गाज़ा संघर्ष एक व्यापक परमाणु युद्ध में बदल सकते हैं। ऐसे में पाकिस्तान और खाड़ी देशों की भागीदारी से यह संघर्ष सम्पूर्ण मानवता के लिए विनाश का कारण बन सकता है।

इतिहास गवाह है  युद्ध ने कभी किसी राष्ट्र को गौरव नहीं दिया, केवल विनाश और पीढ़ियों की पीड़ा दी है। आज जब दुनिया तकनीकी रूप से जुड़ी है, एक मिसाइल का प्रहार सम्पूर्ण मानव सभ्यता को मिटा सकता है।

ऐसे समय में आवश्यक है कि राष्ट्र अपने स्वार्थ और सत्ता की लालसा को त्यागकर शांति, संवाद और सहअस्तित्व के मार्ग पर लौटें।


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