Entertainment: यूं तो सब्जेक्ट्स बहुत से हैं और फिल्म बनाने के वजहें और तरीक़े भी। पर मुझे लगता है की हम कुछ ऐसा बनाए जो सिर्फ कल्पना न हो ...
Entertainment: यूं तो सब्जेक्ट्स बहुत से हैं और फिल्म बनाने के वजहें और तरीक़े भी। पर मुझे लगता है की हम कुछ ऐसा बनाए जो सिर्फ कल्पना न हो बल्कि जनता से जुड़ा मुद्दा हो। ताकि...पता नही मेरे पास लेखको जैसे बडे-बड़े शब्द नही है इस विषय में कुछ कह पाने के लिए की एक हिंदी फीचर-फिल्म के तौर पर मानव मार्केट ही क्यों चुना? बस मुझे इतना पता था की सच्ची घटनाओं से प्रेरित फिल्म बनानी थी इसलिए बनी ‘‘मानव मार्केट‘‘। बहुत ही सादगी के साथ अपनी बांतों को हमसे साझा करते हुए ये कहा हिंदी फीचर-फिल्म की निर्माता निम्मी रोशन सवाने जी ने।
निम्मी जी नागपुर की रहने वाली हैं। उन्होने बताया की उनकी फिल्म के हीरो ओम त्रिपाठी जी से सोशल मीडिया के माध्यम से जान-पहचान हुई और चूंकि ओम जी पहले से ही कई हिंदी फिल्मों और सीरियल्स में काम कर चुके हैं तो एक कलाकार के रूप में उनसे बातचीत होती रहती थी। फिर फिल्म बनाने को लेकर एक बार चर्चा हुई तो ओम जी ने मानव मार्केट की कहानी और लेखक/निर्देशक ग़ुलाम हैदर मंसूरी जी के बारे में बताया। तब निम्मी जी ने फिल्म बनाने की अपनी ये इच्छा, अपने पति रोशन सवाने जी को बताई। तो उन्होने भी कहानी सुनी और फिर इस सब्जेक्ट को लेकर फिल्म बनाना तय हुआ।
उसके बाद हमारी हैदर जी से मुलाकात हुई। उन्होने हमें पूरी कहानी सुनाई। कहानी हमें बहुत इंट्रेस्टिंग लगी। स्टोरी रीडिंग के दौरान कई बार तो कई सीन को लेकर हमारी बहुत लम्बी चर्चा हो जाया करती थी । फिल्म में कई सीन्स ऐसे हैं जिसे हमने उन्हें सिर्फ सुना नही इन्फैक्ट महसूस भी किया। क्योंकि ऐसा हमने ख़ुद के साथ भी और अपने क़रीबियों के साथ होते हुए देखा है। फिल्म के संवाद इतने इम्पेक्टफुल हैं कि फिल्म वास्तविक घटनाओ का अनुभव कराती है। फिर शूटिंग में भी हमें आने का मौका मिला। यहां सबको दिलो-जान से अपना काम करते देख बहुत अच्छा लगा। हर कोई अपने कामों में लगा हुआ था। किसी को कुछ बताने की ज़रूरत ही नही थी कि किसे क्या करना है। हैदर जी, जिस तरह से एक्ट करवाते हैं उसे देखकर लगा की इनके सामने बिना तैयारी के आना मतलब बहुत ख़तरा है पर आर्टिस्ट को बहुत कम्फर्ट रखते हैं और हर आर्टिस्ट की तैयारी भी वो उस ढ़ंग से करवाते हैं। कि किसी भी कलाकार को कोई कन्फ्यूज़न नही रह जाता। इनका टीम वर्क बहुत अच्छा है और यही कारण है की ‘‘मानव मार्केट‘‘ आज एक बहुत अच्छी फिल्म बन पाई है। शूटिंग के दौरान मेरे पति रौशन सवाने जी भी सैट पर आए हैं। उनको हैदर जी का काम करने और काम कराने का तरीका बहुत अच्छा लगा की सब अपने-अपने कामों को अंजाम देने में लगे हुए हैं। फिल्म को बेहतर बनाने के लिए हैदर जी ने फिल्म के हर एक पहलु पर काम किया। ख़ासकर के गानों पर तो उन्होने जी-तोड़ मेहनत की। गाने बनने में भी बहुत वक्त लगे। फिल्म में चार गाने है और चारों अलग-अलग मूड़ के कमाल के गाने हैं। रोमांटिक साँग ‘‘तेरे नैना बावरे‘‘ तो नागपूर के हमारे पूरे फ्रैंड्स और रिलेटिव्स सबके बीच में बहुत पॉपुलर है। कई लोग ‘‘तेरे नैना बावरे‘‘ गाने को सुनते हैं। फिर मुझे या सवाने जी को फोन लगाकर सिर्फ गाने के बारे में बात करते है। फिल्म के चारों गाने ‘‘तेरे नैना बावरे‘‘, ‘‘तू फतेह‘‘, ‘‘जी लो ज़िंदगी‘‘ और ‘‘कलयुग के भगवान‘‘ सोनोटेक यू-टयूब चैनल पर उपलब्ध हैं। मैं अपने पाठकों से अनुरोध करूंगी की आप इन चारों गानों को ज़रूर सुने और अपना फीड-बैक दें। साथ ही फिल्म रिलीज़ होते ही फिल्म भी ज़रूर देंखें क्योंकि ‘‘मानव मार्केट‘‘ सिर्फ एक फिल्म नही बल्कि नए कलाकारों का हिंदी सिने जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का हस्ताक्षर है।
No comments