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जातिवाद की मानसिकता समाज के लिए कैंसर साबित हो रही किसान नेता संजय पंत

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जगदलपुर:  आदिवासी कार्यकर्ता एवं किसान नेता संजय पंत ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर जातिवाद को भारतीय समाज का “कैंसर” बताया है। उन्होंने कहा ...

जगदलपुर: आदिवासी कार्यकर्ता एवं किसान नेता संजय पंत ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर जातिवाद को भारतीय समाज का “कैंसर” बताया है। उन्होंने कहा कि जातिवादी व्यवस्था ने भारत के सामाजिक ताने-बाने को गहराई तक नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि इसके मूल में भेदभाव, अमानवीयता और बर्बरता समाहित है।

किसान नेता पंत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की जाति उसके पूरे जीवनकाल तक उसके साथ चिपकी रहती है और मृत्यु के बाद ही उससे छुटकारा मिलता है। हाल ही में देश में घटी दो घटनाओं ने समाज की इस गहरी बीमारी को उजागर किया है  अनुसूचित जाति के दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों पर हुए अत्याचारों ने यह साबित कर दिया है कि जातिवादी सोच आज भी समाज और संस्थानों के भीतर जीवित है।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बी.आर. गवई के साथ न्यायालय परिसर में हुई जूते फेंकने की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों पर चलने वाले न्यायमूर्ति गवई की शालीन चुप्पी ही इस जातिवादी हमले का सबसे सशक्त जवाब है।

इसी तरह हरियाणा में आईजी रैंक के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की आत्महत्या की घटना का उल्लेख करते हुए पंत ने कहा कि समाज में फैली जातिवादी सोच ने ऐसे अधिकारी को भी झुका दिया, जिसने अपने जीवन में अनेक चुनौतियों का डटकर सामना किया था।

उन्होंने सवाल उठाया कि जब देश में संविधानिक प्रावधान, मंत्रालय और संस्थान मौजूद हैं, तब भी अनुसूचित जातियों पर अत्याचार क्यों नहीं रुक रहे? यदि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और आईजी स्तर के अधिकारी सुरक्षित नहीं हैं, तो आम नागरिक की रक्षा कौन करेगा?

किसान नेता ने कहा कि जातिवाद के विरुद्ध असली सुधार पारिवारिक स्तर पर ही संभव है। हर माता-पिता को अपने बच्चों में समानता, विज्ञान और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता का भाव जगाना चाहिए, ताकि समाज इस विकृत मानसिकता से मुक्त हो सके।

अंत में, भारतीय किसान यूनियन ने न्यायमूर्ति गवई, आईजी अधिकारी और पूरे बहुजन समाज के प्रति अपनी एकजुटता व्यक्त की। संगठन ने सरकार से मांग की है कि दोनों ही मामलों में दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और जातिवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोहराई न जाएं।

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