जगदलपुर : भारतीय सनातन परंपरा में दीपावली केवल दीपों का पर्व नहीं, बल्कि धर्म, पवित्रता, समृद्धि और आत्मशुद्धि का महान उत्सव है। देवर्षि ना...
जगदलपुर :
भारतीय सनातन परंपरा में दीपावली केवल दीपों का पर्व नहीं, बल्कि धर्म, पवित्रता, समृद्धि और आत्मशुद्धि का महान उत्सव है। देवर्षि नारद के अनुसार, दीपावली का पर्व पाँच दिनों तक मनाया जाना चाहिए गोवत्स द्वादशी, धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली अमावस्या और गोवर्धन प्रतिपदा, जो अंततः भाई दूज पर पूर्ण होता है। प्रत्येक दिन का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है।
गोवत्स द्वादशी (कार्तिक कृष्ण द्वादशी):
इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा का विधान है। उन्हें स्नान कराकर वस्त्र, फूलमाला और चंदन से सजाया जाता है। पूजा के समय यह मंत्र जप किया जाता है
“सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता।
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस॥”
गोपूजन से सभी देवताओं की पूजा का फल प्राप्त होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि गोसेवा अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्यदायक होती है। इस दिन गाय के दूध या उससे बने पदार्थों का सेवन निषिद्ध है।
धनतेरस (कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी):
भगवान धन्वंतरि के प्राकट्य दिवस के रूप में यह दिन स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन नए बर्तन, विशेष रूप से चांदी के पात्र खरीदना शुभ माना जाता है।
पूजन के समय मंत्र जपें
“यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये।
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥”
संध्या काल में यमराज की प्रसन्नता हेतु दीपदान का विशेष विधान है।
नरक चतुर्दशी / रूप चौदस (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी):
सूर्योदय से पूर्व तेलाभ्यंग स्नान करने से पापों का नाश होता है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर वध की स्मृति में छोटी दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन चारमुखी दीप जलाकर मंत्र उच्चारण करें
“दत्तो दीपश्चतुर्दश्यां नरकप्रीतये मया।
चतुर्वर्तिसमायुक्तः सर्वपापापनुत्तये॥”
दीपावली (कार्तिक अमावस्या):
यह महालक्ष्मी पूजन का दिन है, जो समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है। प्रातः स्नान, जप, ध्यान के पश्चात संध्या में दीपमालिका से घर आलोकित किया जाता है।
पूजन में इन मंत्रों का जप श्रेष्ठ माना गया है
लक्ष्मी बीज मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः॥
महालक्ष्मी मंत्र ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः॥
लक्ष्मी गायत्री मंत्र ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्॥
श्रीसूक्त और कनकधारा स्तोत्र का पाठ अत्यंत फलदायी माना गया है।
गोवर्धन पूजा / अन्नकूट (कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा):
इस दिन गोवर्धन पर्वत और गौमाता की पूजा की जाती है। गायों को सजाकर भोजन अर्पित किया जाता है और रात्रि में जरूरतमंदों को अन्नदान किया जाता है। यह दिन प्रकृति और अन्न के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है।
भाई दूज (यम द्वितीया):
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को बहनें अपने भाइयों का तिलक कर उनके दीर्घायु की कामना करती हैं। कथा के अनुसार, इसी दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना के घर जाकर वरदान दिया था कि इस दिन भाई–बहन का पूजन करने से मुक्ति प्राप्त होती है।
लोककथा में कहा गया
गंगा पूजे यमुना को, यमी पूजे यमराज को,
सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई की आयु बढ़े॥
दीपावली का यह पंचदिवसीय महोत्सव केवल दीप जलाने का नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, धर्म, सेवा, और समृद्धि का उत्सव है। गोसेवा से प्रारंभ होकर लक्ष्मी पूजन और अन्नदान तक यह पर्व मनुष्य को कृतज्ञता, संतुलन और आंतरिक प्रकाश की ओर अग्रसर करता है।
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