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स्वदेशी की खुशबू से महका लालबाग मैदान — 20 राज्यों की संस्कृति, कला और स्वाद का संगम

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जगदलपुर:    बस्तर दशहरा के उपलक्ष्य में लालबाग मैदान में आयोजित स्वदेशी मेला इन दिनों अपने पूरे शबाब पर है। करीब 300 स्टॉलों से सजे इस मेले ...

जगदलपुर:   बस्तर दशहरा के उपलक्ष्य में लालबाग मैदान में आयोजित स्वदेशी मेला इन दिनों अपने पूरे शबाब पर है। करीब 300 स्टॉलों से सजे इस मेले में देश के 20 राज्यों से आए कारीगर, शिल्पकार और उद्यमी अपनी कला, संस्कृति, परंपरा और नवाचार की झलक पेश कर रहे हैं। हर स्टॉल मानो अपनी मिट्टी की कहानी सुना रहा हो  जहाँ देशी उत्पादों में आत्मनिर्भर भारत की सजीव भावना झलकती है।

हस्तकला और गृह सज्जा के स्टॉलों पर उमड़ रही भीड़

मेले में छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों के कारीगरों ने बांस, बेलमेटल (ढोकरा कला), लकड़ी और मिट्टी से बने अद्भुत शिल्प प्रदर्शित किए हैं। गृह सज्जा की वस्तुएँ, पारंपरिक आभूषण, दीवार हैंगिंग और ग्रामीण जीवन से जुड़ी वस्तुएँ लोगों को खूब आकर्षित कर रही हैं।


पूर्वोत्तर से दक्षिण भारत तक – एक भारत, श्रेष्ठ भारत की झलक

पूर्वोत्तर राज्यों से आई हैंडलूम साड़ियाँ, शॉल, बाँस उत्पाद और हस्तनिर्मित टोकरी विशेष ध्यान आकर्षित कर रही हैं, वहीं दक्षिण भारत से आए शिल्पकार इको-फ्रेंडली नारियल उत्पाद, लकड़ी की काष्ठ कला और पारंपरिक वस्त्रों से मेले की शोभा बढ़ा रहे हैं। दिल्ली, गुजरात और राजस्थान के स्टॉलों पर हैंडमेड कपड़े, जूट बैग और खादी वस्त्रों ने ‘स्वदेशी अपनाओ’ के संदेश को और सशक्त बनाया है।


महिलाओं और युवाओं के हुनर को नया मंच

मेले के कई स्टॉल स्थानीय महिलाओं और युवाओं द्वारा संचालित हैं, जहाँ घरेलू उद्योगों से बने मसाले, अचार, जैविक उत्पाद, हर्बल कॉस्मेटिक्स और वन संपदा से तैयार वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं। इन स्टॉलों पर खरीददारों की लंबी कतारें यह दर्शा रही हैं कि स्थानीय उत्पादों के प्रति लोगों में जागरूकता और विश्वास बढ़ा है। आयोजकों का कहना है कि इस पहल से स्व-सहायता समूहों और लघु उद्योगों को राष्ट्रीय पहचान मिल रही है।


खानपान के स्टॉल बने आकर्षण का केंद्र

मेले का सबसे जीवंत हिस्सा हैं व्यंजन स्टॉल, जहाँ छत्तीसगढ़ी फरा, चीला, ढोकला, इडली-दोसा, लिट्टी-चोखा और पारंपरिक मिठाइयों की खुशबू पूरे परिसर में फैली है। आगंतुकों का कहना है कि “यह मेला केवल प्रदर्शनी नहीं, बल्कि स्वाद, परंपरा और संस्कृति का उत्सव है।

स्वदेशी मेला बना आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक

300 से अधिक स्टॉलों से सजा यह मेला अब एक जनोत्सव का रूप ले चुका है, जहाँ स्वदेशी उत्पादों की रौनक यह संदेश देती है कि आत्मनिर्भर भारत का मार्ग स्थानीय कारीगरों, शिल्पकारों और छोटे उद्योगों से होकर गुजरता है।


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