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फिल्म माटी बस्तर की आत्मा की पुकार, संघर्ष और उम्मीद की कहानी

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• बस्तर की माटी पर बनी फिल्म की प्रेस कॉन्फ्रेंस • फिल्म ‘माटी’ – बस्तर की मिट्टी, दर्द और उम्मीद की दास्तां • ‘माटी’: बस्तर की ज़मीन से निक...

• बस्तर की माटी पर बनी फिल्म की प्रेस कॉन्फ्रेंस

• फिल्म ‘माटी’ – बस्तर की मिट्टी, दर्द और उम्मीद की दास्तां

• ‘माटी’: बस्तर की ज़मीन से निकली सिनेमा की कहानी

जगदलपुर (विमलेंदु शेखर झा) : बस्तर की माटी, वहाँ की खुशबू, संघर्ष और संवेदना को परदे पर उतारने वाली फिल्म ‘माटी’ जल्द ही दर्शकों के सामने आने वाली है। इसी सिलसिले में आज जगदलपुर के होटल आकांक्षा में एक पत्रकार वार्ता आयोजित की गई, जहाँ फिल्म के निर्माता, निर्देशक और कलाकारों ने मीडिया से खुलकर बातचीत की।

फिल्म के निर्देशक अविनाश प्रसाद और निर्माता संपत झा ने बताया कि ‘माटी’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि उस धरती की आत्मा की पुकार है जिसने दशकों तक हिंसा, संघर्ष और उम्मीदों के बीच सांस ली है। यह कहानी बस्तर के लोगों की है. उनके दर्द, प्रेम और जिजीविषा की।

फिल्म में ‘भीमा’ और ‘उर्मिला’ के प्रेम के जरिए बस्तर के गीत, लोककला और मानवीय रिश्तों की लय झलकती है। दशकों तक चले नक्सल संघर्ष के बीच आम लोगों के जीवन की अनकही कहानियाँ, उनकी पीड़ा और जिजीविषा को ‘माटी’ के जरिए परदे पर जीवंत किया गया है।

निर्माता संपत झा ने कहा:

माटी हमारे अपने लोगों की कहानी है। यहाँ कोई नायक या खलनायक नहीं. सिर्फ इंसान हैं, जिनके पास दर्द है, उम्मीद है और अपने बस्तर से गहरा प्रेम है।

वहीं निर्देशक अविनाश प्रसाद ने बताया:

जब हमने कैमरा बस्तर की घाटियों की ओर मोड़ा, तो वहाँ सिर्फ दृश्य नहीं, आत्मा की गहराई तक उतर जाने वाली अनुभूति मिली। माटी उन्हीं अनकहे अहसासों की कहानी है।

फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसके अधिकांश कलाकार स्थानीय हैं  जिनमें शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता और कभी भटके हुए रास्ते से लौटे युवा भी शामिल हैं। सभी ने अपने-अपने अनुभवों के माध्यम से बस्तर की सच्चाई को ईमानदारी से चित्रित किया है।

फिल्म में बस्तर के लोकगीतों, प्राकृतिक सुंदरता, और संवेदनाओं को खास तौर पर उभारा गया है। टीम का मानना है कि हर दर्शक इस फिल्म के जरिए “हमर छत्तीसगढ़, आमचो बस्तर” की माटी को करीब से महसूस करेगा।

‘माटी’ 14 नवंबर 2025 को रिलीज़ होगी।

यह फिल्म सिर्फ एक सिनेमाई अनुभव नहीं, बल्कि बस्तर की रक्तरंजित धरती को समर्पित श्रद्धांजलि है  उन कहानियों के नाम, जो इतिहास में दर्ज नहीं, लेकिन हर बस्तरवासी के दिल में बसती हैं।

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