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कोरोना वायरस का नया वंशज ओमिक्रॉन (B.1.1.529) – डॉ. के.के. मिश्र की कलम से ।

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➡️ बहुरूपिया कोरोना वायरस के नये संस्करण से सावधान! 

कलम से : सार्स कोरोना परिवार का यह वायरस अपने रूप और जीवनशैली में लगातार परिवर्तन करता जा रहा है जिसके कारण कई उत्परिवर्तनों (MUTATIONS) के साथ इसके वंशजों के नये-नये संस्करण (VARIENTS) सामने आते जा रहे हैं । प्रकृति की यह स्पष्ट चेतावनी है कि कोरोना का सामना करने के लिये हमें भी अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करने ही होंगे । मैं पहले भी कई बार लिख चुका हूँ कि “हमें सार्स कोरोना वायरस के साथ ही रहना होगा”।
   
चालू नवम्बर महीने में सार्स कोरोना वायरस-2 के जिस नये संस्करण “ओमिक्रॉन” ने दक्षिण अफ़्रीका, इज़्रेल, बेल्ज़ियम, बोत्स्वाना और हॉन्गकॉन्ग में दस्तक दे दी है वह अभी तक के सर्वाधिक ख़तरनाक डेल्टा संस्करण से भी अधिक चुनौतीपूर्ण प्रमाणित हो रहा है । इसी महीने, बुधवार यानी 24 नवम्बर को दक्षिण अफ़्रीका में पहली बार कोरोना वायरस के एक और नये संस्करण के बारे में पुष्टि हुयी है । इस संस्करण के अध्ययन में अभी कई दिन लग सकने की सम्भावना है किंतु इसके प्रारम्भिक लक्षणों में यह स्पष्ट हो गया है कि इस संस्करण में संक्रमण के तीव्रता से फैलाव की सर्वाधिक क्षमता है । इसकी मारक क्षमता और विभेदात्मक लक्षणों (Differential Diagnosis) के बारे में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है । 
कोरोना वायरस के इस नये संस्करण “ओमिक्रॉन” में अभी तक तीस से भी अधिक उत्परिवर्तनों का पता लग चुका है जिनमें से दस तो केवल इसकी स्पाइक प्रोटीन में हुये हैं जिसके कारण इसकी संक्रामक क्षमता में इतनी अधिक वृद्धि सम्भव हो सकी है, साथ ही यह हर्ड-इम्यूनिटी उत्पन्न कर सकने में भी बाधक हो सकता है जिसके कारण यह एक ही व्यक्ति को बारम्बार संक्रमित कर सकता है । 
उत्परिवर्तन प्राणियों और वनस्पतियों में होने वाली वह जैवरासायनिक प्रक्रिया है जिससे वे अपने आपको पहले की अपेक्षा और भी अधिक सक्षम बनाते हैं । सबसे बुरी बात यह है कि ओमिक्रॉन कोरोना से संक्रमित लोगों में से अधिकांश ऐसे लोग हैं जिन्होंने पहले से ही एण्टीकोरोना वैक्सीन लगवा ली थी जबकि इज़्रेल का एक संक्रमित व्यक्ति ऐसा भी है जिसने तीसरा बूस्टर डोज़ भी ले लिया था । यह ऐसी घटना है जिसने एक बार फिर वैक्सीन की कार्मुकता और विश्वसनीयता पर वैज्ञानिकों को चिंतन करने के लिये विवश कर दिया है । यूँ भी वैज्ञानिक एण्टी-कोरोना वैक्सीन की प्राभाविकता अधिकतम एक वर्ष तक की बताते रहे हैं । प्रश्न उठता है कि एक वर्ष के बाद फिर क्या? एक दूसरी चुनौती यह भी है कि कई पैथोलॉज़िकल लैब्स वर्तमान पी.सी.आर. टेस्ट को एक मार्कर के रूप में उपयोग करने की सलाह दे रही हैं जिसका कारण पी.सी.आर. टेस्ट की वह अक्षमता है जो तीन में से एक टार्गेट जीन (एस. जीन टार्गेट फ़ैल्योर) की पहचान करने के लिए आवश्यक है । इस असफलता के कारण जीन सीक्विंसिंग की पुष्टि सम्भव नहीं हो पाती ।           
 कोरोना वायरस को लेकर हमारे सामने बहुत सी चुनौतियाँ हैं किंतु वह मनुष्य ही क्या जो चुनौतियों का सामना न कर सके । आवश्यकता इस बात है कि कोरोना की आदतों और उत्परिवर्तन की महान क्षमताओं का सम्मान करते हुये हम अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करें साथ ही प्रचुर मात्रा में एण्टीऑक्सीडेण्ट्स से युक्त काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, स्टार एनिस और सोंठ जैसे गर्म मसालों का औषधि की तरह समुचित उपयोग करें ।
लेख : डॉ के के मिश्रा 


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