रायपुर: शरद पूर्णिमा की चांदनी रात कविता, गीत और गज़लों की महक से सराबोर रही। अवसर था कौशल काव्य धारा संस्था द्वारा बरसाना एनक्लेव, टाटीबंध...
रायपुर: शरद पूर्णिमा की चांदनी रात कविता, गीत और गज़लों की महक से सराबोर रही। अवसर था कौशल काव्य धारा संस्था द्वारा बरसाना एनक्लेव, टाटीबंध में आयोजित शरद पूर्णिमा कवि सम्मेलन का, जहाँ शहर के प्रसिद्ध कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ संस्था के अध्यक्ष जे. के. डागर ने अपने जन्मदिवस के अवसर पर किया। इस अवसर पर उन्होंने अपनी रचनाओं से उपस्थित जनसमूह को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण रहे ख्याति प्राप्त कवि संजीव कुमार ठाकुर, जिन्होंने अपनी ग़ज़लों से समा बाँध दिया
ज़ुल्फ़ों में सजा ले मुझे गजरे की तरह,
सारी रात महकूंगा संदल की तरह।
और आगे उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेम और सौंदर्य का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया—
अपनी आंखों में सजा ले मुझे काजल की तरह,
मैं समा जाऊंगा बाहों में आंचल की तरह।
प्रख्यात शायर के. पी. सक्सेना ने अपनी व्यंग्यात्मक रचनाओं से समाज के ज्वलंत प्रश्नों पर प्रहार किया
कौन है सच्चा सनातनी,
इसी में मची है तनातनी।
वहीं कुमार जगदलवी ने समसामयिक मुद्दों पर आधारित कविताओं से सबका ध्यान खींचा। यशवंत यदु ने अपनी धारदार व्यंग्य रचनाओं से हंसी और चिंतन दोनों को जन्म दिया।
वरिष्ठ कवि अमरनाथ त्यागी ने छंद और दोहों के माध्यम से पारंपरिक काव्य रस की अनुभूति कराई, जबकि कवि सूर्यकांत देवांगन ‘प्रचंड’ ने ओजस्वी कविता से वातावरण में देशभक्ति और ऊर्जा का संचार किया।
कार्यक्रम में महिला कवयित्रियों की उपस्थिति और प्रस्तुतियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय रहीं। कवयित्री सुषमा पटेल ने छंद-दोहे में अपनी भावनाएँ रखीं, आशा पाठक ‘डेट’ ने बघेलखंडी लोकगीतों से परंपरा की सुगंध बिखेरी, श्रीमती कल्याणी तिवारी ने मधुर गीतों से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया, वहीं नर्मदा प्रसाद विश्वकर्मा ने अपनी काव्य प्रस्तुति से श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया।
कार्यक्रम का संचालन कवि सुनील पांडे ने अपनी ओजपूर्ण पंक्तियों के साथ अत्यंत रोचक ढंग से किया, जबकि अंत में आयोजक जे. के. डागर ने सभी का आभार व्यक्त किया।
शरद पूर्णिमा की इस सुहानी रात में प्रस्तुत हुईं कविताएँ, ग़ज़लें और गीत देर तक श्रोताओं के दिलों में गूंजते रहे सचमुच यह एक काव्यपूर्ण रात्रि रही, जहाँ शब्दों ने चाँदनी का रूप ले लिया।
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