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भाई दूज भाई-बहन के स्नेह, दायित्व और सनातन संवेदना का पर्व

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जगदलपुर:दीपावली उत्सव की श्रृंखला का अंतिम और सबसे भावनात्मक दिन भाई दूज या भ्रातृ द्वितीया भारतीय संस्कृति में भाई-बहन के पवित्र स्नेह और परस्पर दायित्व का प्रतीक माना गया है। यह पर्व केवल अनुष्ठानों तक सीमित नहीं, बल्कि भारतीय समाज के उस मूल भाव को जीवंत करता है, जिसमें नारी के स्नेह और पुरुष के संरक्षण धर्म का संतुलन निहित है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना के आग्रह पर उसके घर जाकर उसे वरदान दिया था कि जो भाई इस दिन अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाएगा, वह दीर्घायु, भयमुक्त और समृद्ध होगा। तभी से यह पावन परंपरा आरंभ हुई। यम और यमुना का यह मिलन केवल भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के मध्य करुणा, कर्तव्य और संतुलन का संदेश देता है।

भाई दूज का उल्लेख स्कंद पुराण और पद्म पुराण जैसे ग्रंथों में भी भ्रातृ द्वितीया के रूप में मिलता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के दीर्घ जीवन, आरोग्य और समृद्धि की कामना करती हैं, जबकि भाई बहनों को स्नेह, सुरक्षा और आदर का वचन देते हैं। तिलक लगाना मात्र कर्मकांड नहीं, बल्कि बहन का यह आशीर्वाद होता है तू जहां भी रहे, ईश्वर तेरे हर संकट को हर ले, और भाई का उत्तर तेरे स्नेह की रक्षा मेरा धर्म है।

                                         भावना संजीव ठाकुर

सनातन परंपरा में राखी और भाई दूज, दोनों ही भाई-बहन के रिश्ते की दो अनूठी अभिव्यक्तियाँ हैं।

रक्षाबंधन का आधार सुरक्षा और कर्तव्य है, जहाँ बहन रक्षा सूत्र बांधती है और भाई उसकी रक्षा का वचन देता है। वहीं भाई दूज आशीर्वाद और करुणा का पर्व है, जहाँ बहन तिलक कर भाई के दीर्घ जीवन की कामना करती है।

राखी श्रावण पूर्णिमा को आती है  उत्साह और उमंग का समय, जबकि भाई दूज दीपावली के पश्चात् कार्तिक शुक्ल द्वितीया को  जब वातावरण में शांति, आत्मचिंतन और कृतज्ञता का भाव होता है।

राखी सामाजिक बंधन का प्रतीक है  इसमें रक्षा सूत्र का अर्थ समाज में विश्वास और एकता का विस्तार है;

जबकि भाई दूज अधिक आत्मीय और पारिवारिक पर्व है जो स्नेह की गहराई और करुणा के स्पर्श से रिश्तों को सजीव करता है।

आज जब पारिवारिक ढाँचा बदल रहा है, रिश्ते डिजिटल संवादों तक सीमित होते जा रहे हैं, ऐसे में भाई दूज हमें अपने मूल संस्कारों की याद दिलाता है। यह दिन केवल परंपरा नहीं, बल्कि रिश्तों को समय और संवेदना देने की प्रेरणा है।

शहरी व्यस्तता और भौतिकता के इस दौर में भाई दूज एक भावनात्मक ठहराव बनकर हमें यह सिखाता है कि रिश्ते केवल कर्तव्य से नहीं, बल्कि आत्मीयता और संवेदना से जीवित रहते हैं।

भाई दूज केवल व्यक्तिगत संबंधों का पर्व नहीं, बल्कि समाज में संतुलन और करुणा का प्रतीक है। जब बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं, तो वह केवल अपने परिवार के नहीं, बल्कि समाज की शांति और समृद्धि की भी कामना करती हैं। गाँवों और शहरों में इस दिन बहनों का स्नेहिल श्रृंगार, भाइयों का उपहार लेकर पहुँचना, और पारंपरिक व्यंजन ये सब भारतीय संस्कृति की उस जीवंतता को दर्शाते हैं जो हर रिश्ते को उत्सव बना देती है।

भाई दूज हमें यह सिखाता है कि जहाँ प्रेम है, वहीं धर्म है; जहाँ स्नेह है, वहीं सनातनता है।

राखी सुरक्षा का प्रतीक है  एक वचन का बंधन;

भाई दूज आत्मीयता का प्रतीक है  एक संवेदना का स्पर्श।

दोनों पर्व सनातन संस्कृति की दो सुंदर शाखाएँ हैं  एक रक्षा की, दूसरी करुणा की  और यही इस संस्कृति का शाश्वत सौंदर्य है कि हर पर्व केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन को प्रेम, कर्तव्य और भावना से जोड़ने का माध्यम है।


 

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