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अवसरवादिता और जातिवादी राजनीति से विकास में बाधा लोकतंत्र के मूल्यों पर संकट गहराया

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रायपुर:    देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने पर अवसरवादी राजनीति और जातिवादी दृष्टिकोण का गहरा असर पड़ रहा है। राजनीतिक दलों की पद-लोलुप प्रवृत्त...

रायपुर:   देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने पर अवसरवादी राजनीति और जातिवादी दृष्टिकोण का गहरा असर पड़ रहा है। राजनीतिक दलों की पद-लोलुप प्रवृत्ति और तात्कालिक लाभ की नीतियों ने राष्ट्रीय विकास की दिशा को प्रभावित किया है। यह प्रवृत्ति न केवल लोकतंत्र के आदर्शों को कमजोर कर रही है, बल्कि जनता के सामाजिक और आर्थिक जीवन में असुरक्षा की भावना भी बढ़ा रही है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक संजीव ठाकुर का कहना है कि “लोकतंत्र में अवसरवादिता राजनीति का अंग तो हो सकती है, किंतु पद-लालसा और जातिवादी समीकरणों की राजनीति लोकतांत्रिक संस्थाओं को गर्त में ले जाती है।” उन्होंने कहा कि तत्कालीन लाभ के लिए की जाने वाली जन-भावनात्मक राजनीति दीर्घकाल में राष्ट्र की स्थिरता और नीति-निर्माण प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाती है।


ठाकुर ने कहा कि भारत जैसे विकासशील लोकतंत्र में जनतांत्रिक संस्थाओं की परिपक्वता अभी भी चुनौती के दौर से गुजर रही है। आम नागरिकों की सीमित तर्कशक्ति और अदूरदर्शिता के कारण राजनीतिक दल अवसरवादिता का लाभ उठाकर सत्ता के समीकरण बदलते रहते हैं। इससे लोकतंत्र में अधिनायकवादी प्रवृत्तियों को बल मिलता है।

उन्होंने चेताया कि जातिवाद, अवतारवाद और सत्ता की लालसा ये तीन तत्व लोकतांत्रिक मूल्यों के सबसे बड़े शत्रु बन चुके हैं।” उन्होंने कहा कि जातिगत आधार पर होने वाला मतदान और तुष्टीकरण की राजनीति लोकतंत्र की आत्मा को कमजोर करती है। इसके परिणामस्वरूप खाप पंचायतों जैसी अव्यवस्थित व्यवस्थाएं उभरती हैं जो पंचायती लोकतंत्र की जड़ों को खोखला करती हैं।

संजीव ठाकुर ने कहा कि सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए सरकारों द्वारा किए जा रहे निर्णय  जैसे मुफ्त वस्तुओं का वितरण, धार्मिक तुष्टीकरण या किसी वर्ग विशेष को लाभ देने वाली योजनाएं  लोकतांत्रिक संतुलन को बिगाड़ती हैं। उन्होंने इसे “राजशाही जैसी प्रवृत्ति” बताते हुए कहा कि इससे न केवल करदाताओं पर बोझ बढ़ता है बल्कि दीर्घकालीन विकास योजनाएं भी बाधित होती हैं।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, म्यांमार और उत्तर कोरिया जैसे देशों में सुरक्षा और सत्ता नियंत्रण के नाम पर लोकतंत्र का दमन हुआ है, और भारत को ऐसे उदाहरणों से सीख लेनी चाहिए। लोकतंत्र का उद्देश्य सत्ता प्राप्ति नहीं, बल्कि जनता की सेवा और समान अवसरों की व्यवस्था है, ठाकुर ने कहा।

अंत में उन्होंने देश के प्रबुद्ध वर्ग, मीडिया, सिविल सोसाइटी और युवाओं से आह्वान किया कि वे लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा में अग्रणी भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा लोकप्रियता और अवसरवाद के मोह से ऊपर उठकर जब तक राष्ट्र सामूहिक चेतना से काम नहीं करेगा, तब तक विकास के वास्तविक लक्ष्य अधूरे ही रहेंगे।


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